हिमाचल के बेटे ने बनाया राष्ट्रीय रिकॅार्ड, माउंट पुमोरी चोटी फतेह करने वाले बने पहले भारतीय

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हिमाचल के बेटे ने बनाया राष्ट्रीय रिकॅार्ड, माउंट पुमोरी चोटी फतेह करने वाले बने पहले भारतीय

कुल्लूः हिमाचल प्रदेश के बेटे ने वो कर दिखाया जिसे करना हर किसी के बस की बात नहीं है। एवरेस्ट श्रृंखला की सबसे कठिन चोटी माने जाने वाली माउंच पुमोरी चोटी पर हिमाचल के जिला कुल्लू के रहने वाले एक शख्स ने फतेह हासिल कर राष्ट्रीय रिकॅार्ड अपने नाम कर लिया है।

माउंच पुमोरी चोटी फतह करने वाले पहले भारतीय बने:

बता दें कि मनाली के सोलंगनाला गांव के रहने वाले युवक हेमराज ठाकुर नेपाल स्थित माउंट पुमोरी चोटी पर चढ़ने में सफल हुए हैं। उनके इस कारनामे पर घर व इलाके में खुशी की लहर का समा बना हुआ है। हेमराज ने अपने परिवार का ही नहीं बल्कि पूरे राज्य का नाम रोशन किया है। भारत के दो पर्वतारोही इस पर्वत शिखर पर चढ़ने वाले पहले भारतीय बन गए हैं।

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बता दें कि पर्वतारोही हेमराज ने मनाली के पर्वतारोहण संस्थान में बेसिक और एडवांस कोर्स पूरा किया है। इसी कड़ी में उनकी नवंबर 2020 में उत्तराखंड में ट्रेनिंग हुई। इसी ट्रेनिंग के दौरान 30 पर्वतारोहियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुनौतियों के लिए तैयार किया गया। 

इसके बाद हेमराज ठाकुर अपने दल के साथ नेपाल की सबसे कठिन चोटी को फतेह करने गए। माउंट पुमोरी चोटी को फतेह करने के बाद उन्होंने अपना नाम अंतरराष्ट्रीय पर्वतारोही में शामिल कर लिया है।

इन समस्याओं का करना पड़ा सामना:

इस मामले पर जानकारी देते हुए हेमराज ठाकुर ने बताया कि उनकी टीम में चार लोग शामिल थे। जिसमें दो पुरुष और दो लडकियां शामिल थी। वह टीम के लीडर थे। उन्होंने बताया कि उनको पर्वतारोहण के दौरान काफी ज्यादा परेशानी हुई। उनको और उनकी टीम को काफी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। मौसम साफ न होने की वजह से उनको पहली बार निराश लौटना पड़ा। उन्होंने करीबन 7 दिन बेस कैंप में बिताए।

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इतना होने के बाद भी उनकी दिक्कतें यहां खत्म नहीं हुई। उन्होंने बताया कि कोई भी शेरपा उनके साथ जाने को तैयार नहीं था और सब कह रहे थे कि यह बहुत मुश्किल है। फिर एक शेरपा उनके साथ जाने के लिए तैयार हुआ। इसके बाद वह और उनका साथी स्टेनज़िन नोरबू उन शेरपा लोगों के साथ चल पड़े।

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एक दिन कैंप 3 में रेस्ट करने के बाद वे अगले दिन रात के करीब 12 बजे शिविर से निकल गए। इसके बाद उन्होंने पूरी रात और अगले दिन 600 मीटर चुनौतीपूर्ण बर्फीले ढलानों पर रस्सियों को ठीक करने में बिताया। उसके बाद अगले दिन दोपहर 2:30 बजे के करीब वह शिखर पर पहुंचे।

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