शिमला: हिमाचल प्रदेश में काला अजार बीमारी फैलने की खबर सामने आई है। यह बीमारी सैंड फ्लाई नामक खतरनाक मच्छर के काटने से होता है। इसकी पुष्टि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अध्ययन से हुई है।
इन इलाकों में हुई थी जांच:
बता दें कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की टीम शिमला जिले के रामपुर, कुल्लू के निरमंड और किन्नौर के निचार से नमूने एकत्र कर जांच के लिए ले गई थी। रिपोर्ट में इन क्षेत्रों में मौजूद रेत मक्खियों में 7.69 फीसदी पॉजिटिव पाई गई हैं।
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इन रेत मक्खियों की पहचान फ्लेबोटोमस, लांगिडक्टस और फ्लेबोटोमस मेजर के रूप में की गई। इनमें लांगिडक्टस का घनत्व सर्वाधिक पाया गया। जिन गांवों से मक्खियों के ये नमूने इकट्ठा किए गए, उनकी समुद्र तल से ऊंचाई 947 से 2,130 मीटर है। हालांकि ये भूमिगत जल की उपस्थिति से दूर थीं।
निपटने की दी सलाह:
गौरतलब है कि काला अजार को काला ज्वर भी कहते हैं। यह सैंड फ्लाई के काटने से होता है। यह धीरे-धीरे पनपने वाला स्थानिक रोग है। यह जीशमेनिया जींस के प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होता है। इन क्षेत्रों में यह लीशमैनिया डोनोवनी परजीवी के कारण होता है।
रोग के परजीवी आंतरिक अंगों जैसे यकृत, प्लीहा, अस्थि मज्जा आदि में प्रवास करते हैं। उसके बाद यह बुखार शुरू होता है। इलाज न होने पर मरीज की मौत भी हो जाती है। इससे बुखार, वजन में कमी, एनीमिया, यकृत, प्लीहा आदि में सूजन होती है।
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आईसीएमआर के भारतीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञों ने इस रेत मक्खी से निपटने की रणनीतिक योजना बनाने की भी सलाह दी है।
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