किसानों के खाली टैंटों से ठंड का जुगाड़ खंगाल रहे गरीब, छत बनाने के लिए ले जा रहे प्लास्टिक

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किसानों के खाली टैंटों से ठंड का जुगाड़ खंगाल रहे गरीब, छत बनाने के लिए ले जा रहे प्लास्टिक

किसान आंदोलन स्थल पर किसानों के खाली पड़े टेंट से कोई प्लास्टिक उठा रहा है, तो कई बांस की बल्लियां और पुलाव। आसपास की झुग्गियों में रहने वाले गरीब खाली टेंटों का सामान अपनी झुग्गियों पर लगाने के लिए ले जा रहे हैं। उनका कहना है कि ठंड बचने में लड़कियां और पुलाव जलाकर सेक करेंगे तो कोई कह रहा है कि वह प्लास्टिक को अपनी झुग्गी पर डालेगा ताकि कुछ दिन ठंड से बचाव हो जाए।

झोपड़ी काफी जगह से टूट गई है:

'झोपड़ी मजबूत करनी है।' किसान आंदोलन स्थल में किसानों के खाली पड़े अस्थायी आशियानों से बांस की बल्लियां पुलाव और प्लास्टिक के कवर इकट्ठा कर रही 50 साल की खेड़ा कॉलनी निवासी सीमा अपनी मजबूरी बताती हैं। 

वह कहती हैं, 'प्लास्टिक ही ले जा रही हूं। सर्दी में बचने के लिए यह काम आएगी। झोपड़ी पर ढक दूंगी। नेशनल हाइवे-24 के फ्लाईओवर से अंडरपास की तरफ आ रही सड़क के दोनों तरफ के खाली टेंटों से लकड़ी और प्लास्टिक आदि बटोर रही 40 साल की सलवानी बताती हैं, 'झोपड़ी काफी जगह से टूट गई है। सर्दियों में बचने के लिए प्लास्टिक चारों तरफ लगा देंगे तो ठंडी हवा झोपड़ी में नहीं आएगी।'

आन्दोलन से बंद हुई थी दूकान:

आंदोलन स्थल के आसपास यूपी की तरफ स्थित झुग्गी बस्तियों में रहने वाले दर्जनों आदमी, औरतें और उनके बच्चे वहां से लकड़ी, बांस आदि ले जा रहे हैं। वही, दिल्ली गेट के आसपास खोखे लगाए बैठे लोग भी यह सामान ले जाने के लिए बकायदा टेंपो साथ लेकर आए थे। टोल प्लाजा के पास 'अम्मा की चाय की दुकान' में काम करने वाले 4 लोग आंस और पुलाव इकट्ठा कर रहे थे।

उन्होंने बताया कि आंदोलन के शुरू होने के कुछ महीने बाद ही उनकी दुकान बंद हो गई और बाद में टूट गई थी। हाइवे के एक कोने में वह खोखानुमा दुकान वर्षों पुरानी है। अब वे लोग उसे नए सिरे से बनाएंगे। उन्हें इसके लिए लकड़ी आदि मिल गई है। वे इसके लिए किसानों का आभार भी जताते हैं। 

बांस की बल्लियों पर बने ये वही कैंप हैं, जिनको बनाने के लिए आंदोलनकारी किसानों को खासी मशक्कत करनी पड़ी थी। सामान के लिए फंड इकट्ठा किया गया। उसके बाद कारीगरों के साथ खुद किसान 'आशियाना' बनाने में कई दिनों तक जुटे रहे थे। आज भी खाली पड़े टेंटों के अवशेष कई गरीबों की झोपड़ियां मजबूत कर रहे हैं।

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