हिमाचल की लीला बनी मिसाल: पति को खोने के बाद चलाया खुद का कारोबार, नाम के साथ कमाई

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हिमाचल की लीला बनी मिसाल: पति को खोने के बाद चलाया खुद का कारोबार, नाम के साथ कमाई


कुल्लूः
कहते हैं कि हौसला बुलंद हो तो फिर जिंदगी में कितने ही उतार-चढ़ाव क्यों ना आ जाए। इंसान उन सभी बाधाओं को पार कर अपने मकसद तक पहुंच ही जाता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है कुल्लू जिसे के शीशामाटी की रहने वाली लीला देवी ने। 

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बता दें कि शादी के 15 सालों बाद पति की मृत्यु होने पर लीला के सामने अपने दो बच्चों के पालन पोषण की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई। पति को खोने के बाद पूरे घर की जिम्मेदारी लीला देवी के कंधो पर आ गई। परंतु वे इस चुनौती से हारी नहीं बल्कि इसका डट कर सामना किया और शायद यही कारण है कि आज वे खुद आत्मनिर्भर बन अपना कारोबार चला रही हैं। 

ऑर्गेनिक उत्पाद बनाती हैं लीला

इस वक्त लीला आर्गेनिक उत्पादों से आचार-चटनी सहित कई अन्य उत्पादों का कारोबार करती हैं। खास बात तो ये है कि वे अपने साथ-साथ अपने इलाके की महिलाओं से सब्जियां खरीदकर उन्हें भी सशक्त बना रही हैं। इसी कारण उनका चयन मुख्यमंत्री स्टार्टअप योजना के तहत हुआ है।  

मुख्यमंत्री स्टार्टअप योजना बनी वरदान

वहीं, लीला के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार की तरफ से चलाई जाने वाली मुख्यमंत्री स्टार्टअप योजना वरदान साबित हुई है। बता दें कि सूबे की जयराम सरकार युवाओं व युवतियों को उद्यम चलाने के लिए मुख्यमंत्री स्टार्टअप योजना के तहत एक वर्ष के लिए 25 हजार रुपए हर महीने देती है।

यहां से लिया प्रशिक्षण

मिली जानकारी के मुताबिक लीला देवी ने तकनीकी मार्गदर्शन व सहायता कृषि विज्ञान केंद्र बजौरा से प्रशिक्षण लिया। इसके उपरांत उन्होंने चौधरी सरवन कुमार यूनिवर्सिटी पालमपुर से रोजगार चलाने के टिप्स लिए। इसके उपरांत उन्होंने अपने घर पर ही इन सभी उत्पादों को बनाना शुरु किया। 

लोगों को भा रहे कुल्लू रसोई के उत्पाद

वहीं, अब वे समय-समय पर कुल्लू रसोई नाम का स्टॉल लगाकर आचार, चटनी समेत कई अन्य उत्पाद बेच रही हैं। उनके हाथ से बनाए गए आचार व चटनी लोगों को खूब भा रही है। 

नहीं हारी हिम्मत खुद को किया मजबूत 

इस संबंध में जानकारी देते हुए लीला देवी ने बताया कि जब तक उनके पति जिंदा थे तब तक उनका जीवन खुशी-खुशी बच्चों व पति संग गुजर रहा था। परंतु पति की मृत्यु के बाद परिवार का पालन पोषण करना उनके लिए काफी मुश्किल हो गया था। ऐसे हालातों में लीला देवी ने हिम्मत नहीं हारी तथा खुद को आत्मनिर्भर बनाकर अपनी आर्थिकी स्थिति को मजबूत किया।

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